मंगलवार, 1 मार्च 2016

देश का बजट

देश का बजट हर वर्ष बनता और बिगड़ता है लेकिन जनहित का पैसा कितना उन गरीबों तक पहुचता है ये सभी जानते है। पैसे का दुरूपयोग रोकने का उचित उपाय नहीं दिखा। कल हो या आज सभी सरकारों ने यही काम किया और आज भी यही हुआ। कांग्रेस ने तो भारत के मज़दूरों तक भ्रष्टाचार पंहुचा दिया। यह उसका दृष्टिकोण था जिसे अब बदलना चाहिए था। भारत में पैसा बनाना आज भी आसान है और कल भी था। तमाम नेताओ को आम जनता तो जान ही गयी है जो कभी एक साधारण से पद से आज करोड़पति हैं। उनके यहाँ आज नाती या पनती आज करोड़पति होकर ही पैदा हो रहे है। ऐसी व्यवस्था को ही आत्मसात करके ही जनता भी आज वगैर काम किये ही करोड़पति बनना चाह रही है। इसमे गलत भी कुछ नहीं नजर आ रहा है किसी को। अपनी गलत कमाई को सुरक्षित बनाने के लिए ही तो कानून कमजोर करने का आज तक की प्रथा रही है। इसी कमी का लाभ लेकर ही आज के लोग नाजायज पैसा बना रहे है। इस पैसे की कोई भी सीमा नहीं होती है। आप कोई भी कानून बना लो जब तक उसको लागू करने वाले पर जिम्मेदारी नहीं होगी तब तक आम जनता का धन लुटता रहेगा और जनता देखती रहेगी। 

समय आ ही गया है जब जनता को अब इन कर्ता - धर्ता से हिसाब का अधिकार भी मिलना ही चाहिए। जनता पांच साल तक जन धन को लुटते हुए नहीं देख सकती है। तब हर लोग कहते है अबकी सरकार बदल देंगे, तब तक बहुत कुछ बदल जाता है। पहले के लुटेरे चले जाते है नए आ जाते है। नए के बाद वही पुराने वाले फिर से गद्दी नशीन हो अपनी नीतियों से जन-धन का बंदरबांट करते नजर आने लगते है। 

जनता के धन के बजट में एक-एक पाई का हिसाब हो, उसके खर्च की अन्त तक परीक्षण हो जनता ही निर्धारित करे वाकई ये धन खर्च हुआ या नहीं। गांव के प्रधान भी अब पीछे नहीं रहे, वे भी आज नवीनतम संसाधनों से अपने को समृद्ध करना चाहते है न की आम जन की सुविधाओ को। सम्पूर्ण ग्राम विकास के धन का बन्दर-बांट योजना बनने के समय ही तय हो जाता है। किस तरीके से कितना किसको मिलना है।  कभी -कभी तो काम भी नहीं होता और भुगतान जेबों में चला जाता है। इनके दमंग स्वभाव के चलते कोर्ट-कचेहरी के भय से भी तमाम मामले सज्ञान में भी नहीं आ पाते है।

जवाहरलाल नेहरू के खानदानियों ने जनता का मुंह बंद करने के लिए व भ्रष्टाचार को नीचे तक पहुचाने के लिए मनरेगा योजना सुरु की। इसमे भी मजदूरों ने नाम लिखा कर आधा अपने लिए वगैर काम किये ही ले लिए और आधा पता चला कर्ता-धर्ता ही बराबर कर गए। कांग्रेसी नेताओं के उद्देश्य पूरे हुए और उनकी विचारधारा आम जान तक पहुंच गयी। 

यानि अब मौजूदा सरकार को सोचने के लिए मजबूर करना पड़ेगा की वो कैसे इस मनरेगा के तहत देने वाले धन का एक-एक पाई सुरक्षित करे। यदि को उचित फैसले समय रहते नहीं लिए गए तो किसान और मजदूर के नाम का बजट भी दन्त विहीन और लूटपाट करने वालों के लिए ये केंद्रीय सरकार भी एक साधन मात्र बनकर रह जावेगी।